बीकानेर के पांच शताब्दी से अधिक प्राचीन चिंतामणि जैन मंदिर में निकलेगी दुर्लभ प्रतिमाएं आचार्यश्री जिनमणि प्रभ सूरिश्वरजी के सान्निध्यमें मंदिर में महोत्सव 27 से
बीकानेर के पांच शताब्दी से अधिक प्राचीन
चिंतामणि जैन मंदिर में निकलेगी दुर्लभ प्रतिमाएं
आचार्यश्री जिनमणि प्रभ सूरिश्वरजी के सान्निध्यमें
मंदिर में महोत्सव 27 से
बीकानेर, 25 अक्टूबर। जैन श्वेताम्बरखरतरगच्छ संघ के गच्छाधिपति आचार्य तथाराजस्थान सरकार की ओर से विशेष अतिथि कादर्जा प्राप्त श्री जिन मणिप्रभ सूरिश्वरजी केसान्निध्य में भुजिया बाजार के पांच शताब्दी सेअधिक प्राचीन चिंतामणि जैन मंदिर में 27नवम्बर से एक दिसम्बर तक विशेष महोत्सवमनाया जाएगा
। उत्सव के दौरान 1116 अतिप्राचीन प्रतिमाओं का अभिषेक, विशेष पूजासहित उत्सव होगा।
अष्ट धातु की ये प्रतिमाएं500 से 2025 वर्ष पुरानी है।
चिंतामणि जैन मंदिर प्रन्यास के अध्यक्षनिर्मल धारीवाल ने बताया कि इससे पूर्व 2009में नवम्बर के अंतिम सप्ताह में इन प्रतिमाओं कोअभिषेक, पूजन व दर्शनार्थ निकाला गया तथाविशेष उत्सव मनाया गया
धारीवाल ने जैनप्रतिमाओं के इस संग्रह में विक्रम संवत् 1022 से1602 के मध्य की 1116 धातु प्रतिमाएं हैं।सभी प्रतिमाएं लेखांकित है।
यह अनमोल धरोहरआषाढ़ सुदि 11 विक्रम संवत् 1639 के शुभदिन बीकानेर में लाई गई थी।
धारीवाल ने बताया कि अकबर के एकसेनापति तुरसमखान ने विक्रम संवत् 1633 मेंराजस्थान के सिरोही क्षेत्र पर आक्रमण कियाएवं उस क्षेत्रा पर, अपना आधिपत्य कायम करलियां इसी दौरान उन्हें कहीं से सूचना मिली किजैन धातु प्रतिमाओं में स्वर्णधातु की बहुलता हैऔर इसी कारण ये चमकती है।
उस धनपिपासुने तुरन्त अपने सैनिकों को आदेश दिया कि इसक्षेत्रा के मंदिरों में स्थापित धातु मूर्तियों को उठालिया जाए। सारी प्रतिमाएं संग्रहित कर ली गई।
प्रतिमाओं को गलाने के लिए फतेहपुर सीकरी लेजाया
गया।
इस घटना की सूचना जब बीकानेर केधर्मपरायण दीवान कर्मचंदजी बच्छावत कोमिली तो उनका हृदय विचलित हो उठा कि इनप्रतिमाओं को किस प्रकार गलने से बचायाजाए।
बहुत सोच विचार कर उन्होंने बादशाहअकबर को फतेहपुर सीकरी में बहुमूल्य उपहारभेंट किए, जिससे बादशाह प्रसन्न हो गए।
बच्छावत ने 1050 प्रतिमाओं को नहीं गलाने वउसके बदले में उन्हें सौंपने तथा बदले में सोनादेने का आग्रह किया। बादशाह ने प्रतिमाएंकर्मचंद बच्छावत को को भेंट करनेके आदेश देदिए।
उस समय बीकानेर के महाराजा रायिंसहवहीं थे। बादशाह ने महाराजा रायसिंह कोबीकानेर तक प्रतिमाओ को सुरक्षित भिजवानेका जिम्मा सौंपा महाराजा ने जिम्मा बखूबीनिभाया ।
बीकानेर में विक्रम संवत् 1639 कोपहुंचने पर जैन समाज के बड़ी संख्या में श्रावकराजमहल गए तथा धूमधाम से
प्रतिमाओं कोचिंतामणि जैन मंदिर तक लाया गया।
मूर्तियों कीसुरक्षा के लिए एक भूगर्भ भंडार बनवाया गयाइसमें सुरक्षित रखवा दिया गया।
तब से अब तकविशिष्ट अवसरों पर ही इन्हें निकाला जाता है,पूजा व अभिषेक के बाद पुनः भूगर्भ भंडार मेंरख
दिया जाता है।
धारीवाल ने अतीत का स्मरण करते हुएबताया कि
विक्रम संवत् 1987 मेंं जैनाचार्यकृपाचद्रसूरिजी के
बीकानेर चातुर्मास में कार्तिकसुदी 3 को, विक्रम संवत् 1995 में हरि सागरसूरिश्वरजी के बीकानेर आगमन पर
भादवा माहमें, पुनः संवत विक्रम संवत् 2000 में मणिसागरसूरिजी के आगमन पर निकाली गई।
संवत्2000 के पश्चात संवत् 2019 में व 2033 में
आखिरी बार निकाली गई।
पुनः विक्रम संवत्2066 यानि वर्ष 2009 में अब 27 नवम्बर2017 विक्रम संवत् 2074 में गच्छाधिपतिआचार्य
श्री जिन मणिप्रभ सूरिश्वरजी के सान्निध्यमें निकाला जा
रहा है।
वर्ष 2009 में प्रतिमाओंके निकलने पर देशविदेश के शोधार्थी, लेखक वइलैक्ट्रोनिक व प्रिंट मीडिया के लोग बीकानेरपहुंचे थे
बड़ी संख्या में जैन श्रद्धालुओं ने दर्शनकिए।
इस बार भी देश के विभिन्न इलाकों से श्रावक श्राविकाएं बीकानेर पहुंच रहे है।
धारीवाल ने बताया कि इतिहास काअध्ययन करने वाले शोधार्थियों के लिएलेखांकित प्रतिमाएं बहुत महत्वपूर्ण है । लेखोंका अध्यन करने से उस समय के आचार्यों,
उनको गच्छों, श्रावकों के गोत्रों आदि की जानकारीप्राप्त होती है।
उन्होंने बताया कि कालक्रम कीदृष्टि से 11 वीं सदी की 9 बारहवीं शताब्दी की10 तेरहवीं शताब्दी की 63 चौदहवीं शताब्दी की259 पन्द्रहवीं शताब्दी की 436 सोलहवींशताब्दी की 339 सहित कुल 1116 प्रतिमाएंहै।
अलग अलग आकृतियों की इस कलाकृतियोंमें एक तीर्थंकर बैठी मुद्रामें दो का काउसग्ग मुद्रामें’’ में है ऐसी प्रतिमाओं का निर्माण पिछले 500वर्ष पूर्व बंद हो चुका है।
इन लेखों से उस क्षेत्र केलगभग 55 स्थानों के नामों की जानकारीमिलती है] जिनमें से अब कई नाम परिवर्तित होचुके है।
आलेख-शिव कुमार सोनी
सहायक प्रशासनिक अधिकारी
सूचना एवं जन सम्पर्क कार्यालय,बीकानेर
98297&96214
अोर भि जाने ये प्रतिमा के बारे मे
BIKANER अष्टधातु से निर्मित 500 से 2025 वर्ष पुरानी 1116 दुर्लभ प्रतिमाएं आएगीं बाहर
इन प्रतिमाओं को विक्रम संवत 1639 में लाए थे बीकानेर,
27 नवम्बर से चिंतामणि जैन मंदिर में होगा महोत्सव, पूजन-अभिषेक के होंगे आयोजन
अष्टधातु से निर्मित 500 से 2025 वर्ष पुरानी 1116 दुर्लभ प्रतिमाएं आएगीं बाहर
पांच सौ से दो हजार साल पुरानी 1116 जैन प्रतिमाएं २७ नवम्बर को बीकानेर के चिंतामणि जैन मंदिर के गर्भगृह से बाहर निकाली जाएगी। मंदिर के महोत्सव के आयोजन में इन प्रतिमाओं का अभिषेक और विशेष पूजन किया जाएगा। विक्रम संवत 1639 में धातु से निर्मित इन दुलर्भ प्रतिमा सीकर से बीकानेर रियासत में लाकर मंदिर के गर्भगृह में रखवाया गया था। आठ साल बाद धातु निर्मित इन प्राचीन प्रतिमाओं को दर्शनार्थ गर्भगृह से निकाला जा रहा है।
पांच शताब्दी से अधिक प्राचीन श्रीचिंतामणि जैन मंदिर में 27 नवम्बर से एक दिसम्बर तक विशेष महोत्सव का आयोजन होगा। *जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के गच्छाधिपति मणिप्रभ सूरिजी महाराज* के सानिध्य में आयोजित महोत्सव के दौरान प्राचीन 1116 प्रतिमाओं का अभिषेक, विशेष पूजन किया जाएगा। मंदिर प्रन्यास के अध्यक्ष निर्मल धारीवाल ने बताया कि उत्सव में देशभर से श्रद्धालु पहुंचेंगे।
इस दौरान मंदिर परिसर में पांच महापूजन, प्रतिदिन पूजा-अर्चना, अभिषेक, दर्शन के आयोजन होंगे।
इससे पूर्व 2009 में नवम्बर में इन प्रतिमाओं को अभिषेक, पूजन व दर्शनार्थ निकाला गया था। धारीवाल के अनुसार विक्रम संवत् 1022 से 1602 के मध्य की इन 1116 धातु प्रतिमाओं पर लेखांकित भी है।
87 साल में 6 बार निकाली
भुजिया बाजार स्थित श्री चिंतामणि जैन मंदिर में बीते 87 साल में इन प्राचीन प्रतिमाओं को केवल सात बार ही अभिषेक और दर्शनार्थ मंदिर के गर्भगृह से बाहर निकाला गया। विक्रम संवत् 1987, 1995, 2000, 2019, 2033, 2066 में प्रतिमाएं भूगर्भ भण्डार से निकाली गई थी।
11वीं से 16वीं शताब्दी तक की प्रतिमाएं
मूर्ति पर उत्कीर्ण लेखों का अध्ययन करने से उस समय के आचार्यों, उनके गच्छों, श्रावकों के गोत्रों आदि की जानकारी प्राप्त होती है। ये प्रतिमांए 11वीं से 16वीं शताब्दी के मध्य की है। 11 वीं सदी की 9, 12वीं शताब्दी की 10, 13वीं शताब्दी की 63, 14वीं शताब्दी की 259, 15वीं शताब्दी की 436, 16वीं शताब्दी की 339 प्रतिमाएं हैं।
अकबर के कब्जे में थी प्रतिमाएं
धारीवाल ने बताया कि अकबर के सेनापति तुरसमखान ने विक्रम संवत् 1633 में राजस्थान के सिरोही क्षेत्र पर आक्रमण कर वहां के मंदिरों में स्थापित धातु की प्रतिमाओं को उठवा लिया। इनको गलाने के लिए फतेहपुर सीकरी ने जाया गया। इसकी जानकारी मिलने पर बीकानेर के दीवान कर्मचन्द बच्छावत ने प्रतिमाओं को गलाने से बचाने के लिए बादशाह अकबर को फतेहपुर सीकरी में बहुमूल्य उपहार भेंट किए।
बच्छावत ने अकबर से 1050 प्रतिमाओं को उन्हें सौंपने के बदले सोना देने का आग्रह किया। जिस पर बादशाह ने प्रतिमाएं कर्मचंद बच्छावत को भेंट कर दी। बादशाह ने बीकानेर रियासत के तत्कालीन महाराजा रायसिंह को प्रतिमाओं को सुरक्षित ले जाने की जिम्मेदारी सौंपी। जिस पर विक्रम संवत् 1639 में जैन समाज के श्रावक राजमहल गए तथा धूमधाम से प्रतिमाओं को चिंतामणि जैन मंदिर में लाकर रखी।